तेरी
इस दुनियां में
ऐसा मंजर क्यों
है ?
कही
जखम तो कहीं
पीठ पर खंजर
क्यों है?
सुना
है कि तू
हर जर्रे-जर्रे
में रहता है..
तो
फिर जमी पर
कहीं मस्जिद और
मन्दिर क्यों है?
जब
रहने वाले इस
दुनियां के है तेरे
ही बन्दे..
तो
फिर कोई किसी
का दोस्त और
कोई दुश्मन क्यों
है?
तू
ही लिखता है
जब सवका मुकद्दर…
तो कोई बदनसीब और कोई मुकद्दर का सिकंदर क्यों है? |